उत्तर प्रदेश के इस गांव में हैं स्वर्ग का पेड़, रात में खिले फूल झड़ जाते हैं सुबह

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Parijat Tree In Uttar Pradesh: अगर आप स्वर्ग (heaven tree)की परिकल्पना करते होंगे तो आपके मन में ये सवाल उठता होगा कि स्वर्ग आखिर कितना सुंदर होता होगा. स्वर्ग से उतरी अप्सराओं की कहानी आपने जरूर सुनी होगी लेकिन क्या आपने स्वर्ग के पेड़ के बारे में सुना है. जी हां बात हो रही है स्वर्ग के पेड़ यानी पारिजात के पेड़ (parijat tree) की. ये दिव्य पेड़ उत्तर प्रदेश के एक गांव की अनोखी शान बन गया है और यहां खिलने वाले रंग बिरंगे फूल रोज रात को खिलते हैं और सुबह होते ही झड़ जाते हैं. इस दिव्य पेड़ को देखने के लिए यहां दूर दूर से लोग आते हैं. कहा जाता है कि समुद्र मंथन से अमृत के साथ साथ निकलने वाली चीजों में पारिजात का पेड़ भी था. अपनी पत्नी सत्यभामा की जिद पर भगवान कृष्ण इस पेड़ को स्वर्ग से धरती पर लाए और महाभारत काल में अर्जुन इसे द्वारका नगरी से किंतूर गांव में लाए थे. 

 

उत्तर प्रदेश के किंतूर गांव में है ये पेड़  

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में किंतूर गांव में ये पारिजात का पेड़ स्थित है. पारिजात के पेड़ का केवल एक नाम नहीं है. इसे हरसिंगार, शैफाली, प्राजक्ता और कई अन्य नामों से पुकारा जाता है. इसे बंगाल का राजकीय फूल होने का दर्जा भी प्राप्त है. लेकिन पारिजात का इतना विशाल पेड़ आपको केवल इसी गांव में देखने को मिलेगा. इस पेड़ पर रोज रात को छोटे छोटे बेहद सुदर फूल खिलते हैं और सुबह होते ही ये सारे फूल गिर जाते हैं. 

 

कहां है ये गाँव 

बाराबंकी जिले से करीब 38 km दूर किंतूर नाम का ये गांव महाभारत काल में बना था और इसका नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर रखा गया था. जब पांडवों को अज्ञातवास मिला तो वो इसी गांव में रुके थे. यहां माता कुंती को रोज भगवान शिव को अर्पित करने के लिए जब फूलों की जरूरत पड़ी तो अर्जुन स्वर्ग से पारिजात के पेड़ को धरती पर ले आए थे. यहां कुंती द्वारा स्थापित मंदिर कुंतेश्वर मंदिर भी मौजूद है. 

 

क्यों अनोखा है पारिजात का पेड़  

बाकी पेड़ों की तुलना में इसके फूल अलग समय में खिलते हैं. इसके पीछे भी देवराज इंद्र के श्राप की कथा छिपी है. जहां सारी दुनिया में फूलों के खिलने का समय सुबह होता है, वहीं पारिजात रात में फूलों से गुलजार होता है. कहा जाता है कि सत्यभामा ने इस पेड़ के फूलों को अपने बालों में लगाया औऱ वहीं रुक्मणी ने इन फूलों से अपने व्रत का उद्यापन किया था. देखा जाए तो ये पेड़ केवल भारत के इसी गांव में है और ये बाकी प्रजातियों से बिलकुल अलग है.

 

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