चंद्रयान-3 पृथ्वी से चांद तक जाने के लिए अपने साथ कितना फ्यूल लेकर गया? इतना तो खर्च हो चुका

1 min read

[ad_1]

चंद्रयान-3 23 अगस्त 2023  को शाम के 6 बजे के आसपास चांद की सतह पर लैंड कर सकता है. लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर चंद्रयान-3 को चांद पर पहुंचने के लिए कितने फ्यूल की जरूरत पड़ी. और इससे भी बड़ा सवाल ये कि उसे चांद पर लंबे समय तक काम करने के लिए कितने फ्यूल की जरूरत पड़ेगी. इसके साथ ही एक सावल ये भी लोगों के मन में है कि आखिर चंद्रयान-3 में नॉर्मल पेट्रोल डीजल पड़ता है या कोई खास फ्यूल इसमें डाला जाता है. चलिए आज इस आर्टिकल में आपके इन्हीं सवालों का जवाब देते हैं.

चंद्रयान-3 में कितना फ्यूल आता है?

इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने इस बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा था कि चंद्रयान-3 में लॉन्चिंग के समय यानी 14 जुलाई को 1696.4 किलो फ्यूल भरा गया था. इसे हम किलो में इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि जिस तरह के फ्यूल का इस्तेमाल चंद्रयान-3 में किया गया है उसे आप किलो में लिख सकते हैं. आपको बता दें, इस इंटरव्यू के दौरान एस सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 में अभी भी लगभग 150 किलो से ज्यादा फ्यूल बचा हुआ है, जो उसे लंबे समय तक काम करने की स्थिति में रखेगा?

चंद्रयान-3 में किस तरह के फ्यूल का इस्तेमाल हुआ है?

किसी भी स्पेस शटल या स्पेस क्राफ्ट को चलाने के लिए जिस फ्यूल की जरूरत होती है, उसे लिक्विड हाइड्रोजन कहते हैं. लिक्विड हाइड्रोजन दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा लिक्विड है. इसका तापमान माइनस 252.8 डिग्री सेल्सियस होता है. चंद्रयान-3 में भी इसी फ्यूल का इस्तेमाल किया गया है. नासा जैसी स्पेस एजेंसियां भी जब अपना कोई स्पेस शटल लॉन्च करती हैं तो इसी फ्यूल का इस्तेमाल करती हैं.

दुनियाभर में इस फ्यूल को लेकर रिसर्च चल रहा है कि क्या इसका इस्तेमाल गाड़ियों में भी किया जा सकता है. भारत सरकार भी ग्रीन हाइड्रोजन नाम के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. अगर उसे इसमें सफलता मिल गई तो वो दिन दूर नहीं जब दुनिया डीजल पेट्रोल और उसके प्रदूषण से मुक्त हो जाएगी.

ये भी पढ़ें: चंद्रयान-3 ने अगर ढूंढ ली ये चीज तो पूरी दुनिया हमें करेगी फॉलो! ये काम तो कभी नासा भी नहीं कर पाया

[ad_2]

Source link

You May Also Like

More From Author