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राजू में जिद थी. जुनुन था…उसका जीवन शैलेंद्र के लिखें गीतों की तरह था. तभी तो सेल्युलाइड की चकाचौंध के बीच वो ये बात कहने में सफल रहा कि ”सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है, न हाथी है न घोड़ा है, वहां पैदल ही जाना है.” वो ‘अनाड़ी’ होकर भी करोड़ों लोगों को ये बात समझाने में सफल रहा कि ”गर्दिश में हो तारे न घबराना प्यारे, गर तू हिम्मत न हारे तो होंगे वारे न्यारे….”
जी हां यहां बात हो रही है हिंदी सिनेमा की अजीम-ओ-शान शख्सियत ‘राज कपूर’ की. जिन्हें शोमैन के नाम से भी जाना जाता है. राज कपूर का सिनेमा को महज मनोरंजन प्रदान नहीं करता है. वो एक मिशन की तरह लगता है. जो अवला नारी की बात करता है. सामाजिक कुरितियों को पर्दे पर मुखर होकर रखता है. संगठित अपराध पर प्रहार करता है. रोमांस की नई परिभाषा गढ़ता है, जिसमें प्रेम जिस्मानी नहीं एक रूहानी एहसास बनकर महकता है.
सही मायने में राज कपूर जीनियस थे. जिनका मकसद सिनेमा को सशक्त और इसे देखने वालों का जीवन बेहतर बनाना था. बात 1960 की है. आजादी के बाद देश में एक नई समस्या ने पैर पसारना शुरू कर दिया था. सरकार भी इससे परेशान होनी लगी थी. ये समस्या थी हिंदी भाषी राज्यों में डाकुओं का उदय होना. देखते ही देखते कई उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार आदि में डाकुओं के कई गिरोह कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बन गए थे. तब राज कपूर ही थे बंदूक के सामने कैमरा लेकर खड़े थे. डाकुओं को आत्मसमर्पण करने के लिए उन्होने फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ बनाई. जिसका व्यापक असर देखने को मिला.
‘श्री 420’ बनाकर वे कुलीन वर्ग के भ्रष्टाचार पर अपने कैमरे से करारी चोट करते दिखाई देते हैं. बात आधी आबादी के हक की हो तो भी राज कपूर का कैमरा मुखर होकर महिलाओं की आवाज बनता है. फिल्म ‘प्रेमरोग’ इसका एक अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है. राजकपूर कला के पुजारी थे. साथ ही हुनर को परखने की कला रखते थे. एक किस्सा बड़ा मशहूर है. ये बात तब की है जब अमिताभ बच्चन सुपर स्टार नहीं बने थे और एक हिट फिल्म के लिए संघर्ष कर रहे थे. अमिताभ बच्चन की एक फिल्म की शूटिंग आरके स्टूडियो में चल रही थी. राज कपूर वहां से गुजरे तो उनकी आवाज सुनाई दी. इसके बाद राज कपूर ने अपने एक सहायक से पूछा कि ये किसकी आवाज है? तो उसने बताया कि एक नया कलाकर आया है, अमिताभ बच्चन नाम है. तब राजकपूर ने कहा ये कलाकार एक दिन सुपर स्टार बनेगा. राज कपूर की ये भविष्यवाणी बाद में सच साबित हुई.
राज कपूर मे हिन्दी सिनेमा में संगीत को नई दिशा प्रदान की. ‘शिवरंजनी’ राज कपूर का पसंदीदा राग था. शैलेन्द्र, शंकर-जयकिशन, हसरत जयपुरी और मुकेश की जोड़ी आज भी सबसे लाजवाब जोड़ी मानी जाती है. गायक सुरेश वाडेकर,रवीन्द्र जैन जैसे कई कलाकारों को भी राज कपूर ने ही मौक़ा दिया. राज कपूर भारत ही नहीं देश के बाहर भी लोकप्रिय थे. उस जमाने में देश की कूटनीति में उनका योगदान भी किसी से छिपा नहीं है. रूस में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी.
राज कपूर के फिल्मी योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. उनके योगदान के फलक इतना बड़ा है कि किस एक लेख में समेटा नहीं जा सकता है. राज कपूर उस दौर के पहले एक्टर थे जिन्होने हिंदी सिनेमा से आम आदमी को जोड़ने का बीड़ा उठाया. इतिहास के पन्नों के पलटेंगे तो पाएंगे कि ये वही दौर था जब दुनिया तेजी से बदल रही थी. सोवियत रूस के टूटने की नींव रखी जा रही थी… बर्लिन की दीवार में जब दरारें पड़ रही थीं तब आजादी का जश्न मना रहे भारतवासियों को सिल्वर स्क्रीन पर राज कपूर तरक्की के सपने दिखा रहे थे. और बता रहे थे कि-
मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिस्तानी
सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी
मेरा जूता…
निकल पड़े हैं खुली सड़क पर
अपना सीना ताने
मंज़िल कहाँ कहाँ रुकना है
ऊपर वाला जाने
बढ़ते जायें हम सैलानी, जैसे एक दरिया तूफ़ानी
सर पे लाल…
ऊपर नीचे नीचे ऊपर
लहर चले जीवन की
नादाँ हैं जो बैठ किनारे
पूछें राह वतन की
चलना जीवन की कहानी, रुकना मौत की निशानी
सर पे लाल…
होंगे राजे राजकुंवर हम
बिगड़े दिल शहज़ादे
हम सिंहासन पर जा बैठे
जब जब करें इरादे
सूरत है जानी पहचानी, दुनिया वालों को हैरानी
सर पे लाल…
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