11 सीटें और जेडीएस का वोटबैंक…, कावेरी जल विवाद में बीजेपी को कैसे मिला सियासी अमृत?

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कर्नाटक में पानी के बहाने बीजेपी बड़ा सियासी उटलफेर करने की तैयारी में है. कावेरी जल विवाद पर पहली बार जेडीएस और बीजेपी एक मंच पर आई है. जानकारों का कहना है कि यह मुद्दा अगर तुल पकड़ता है, तो आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है.

इसकी 2 वजह है. पहला, कावेरी का मुद्दा लोकसभा के 11 सीटों को असर करती है और दूसरा जेडीएस इस मुद्दे पर बीजेपी के साथ है.

दरअसल, कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने ऐलान किया है कि कावेरी नदी का 10 टीएमसीएफटी पानी पड़ोसी राज्य तमिलनाडु को दिया जाएगा. सरकार का कहना है कि मानसून की कमी के कारण तमिलनाडु के पास पीने के पानी और कृषि जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए बांधों में पर्याप्त पानी नहीं है.

बीजेपी ने तमिलनाडु को पानी देने के फैसले को किसान विरोधी बताया है और कहा है कि डीएमके से गठबंधन बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया है. बीजेपी ने किसानों के गढ़ मंड्या में इसके खिलाफ प्रदर्शन भी किया, जिसे जनता दल सेक्युलर का समर्थन प्राप्त था. 

कर्नाटक में कावेरी का जल विवाद क्या है?
कर्नाटक से निकलने वाली कावेरी नदी का जल विवाद 150 साल पुराना है. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आखिरी फैसला दिया था. तमिलनाडु का कहना है कि कर्नाटक बांध के जरिए कावेरी का जल रोक लेता है, जिससे तमिलनाडु में बहने वाली इस नदी के पानी का प्रयोग किसान नहीं कर पाते हैं.

कोर्ट ने कावेरी जल प्रबंधन के फॉर्मूले पर मुहर लगाते हुए इसे पालन करने के लिए कहा था. फॉर्मूले के मुताबिक समान्य वर्ष में कावेरी के 740 टीएमसीएफटी में से तमिलनाडु को 404.25 टीएमसीएफटी, कर्नाटक को 284.75 एमसीएफटी, केरल को 30 टीएमसीएफटी और पुडुचेरी को 7 टीएमसीएफटी पानी मिलेगा.

इस साल कमजोर मानसून की वजह से तमिलनाडु में पानी की किल्लत हो गई, जिसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. राज्य का कहना था कि कर्नाटक कावेरी का पानी रोक रखा है और कावेरी जल प्रबंधन के आदेश के बावजूद पानी नहीं दे रहा है. 

तमिलनाडु सरकार ने केंद्र से भी हस्तक्षेप की मांग की. इसी बीच कर्नाटक ने तमिलनाडु को पानी देने का ऐलान कर दिया. बीजेपी का कहना है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखे की बजाय सीधे पानी देने का फैसला कर लिया. 

मोदी सरकार में मंत्री शोभा करंदजाले ने कावेरी जल बंटवारे को लेकर कर्नाटक सरकार श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है.

कावेरी विवाद पर एक साथ क्यों आई बीजेपी-जेडीएस?
कावेरी नदी लोकसभा की 11 सीटों को प्रभावित करती है, जिसमें हासन और मंड्या जैसे जेडीएस की दबदबे वाली सीटें भी शामिल हैं. बीजेपी ने मंड्या से ही विरोध प्रदर्शन की शुरुआत की है. जेडीएस की पूरी राजनीति किसान और वोक्कलिगा वोटों पर टिकी है. 

जानकार बीजेपी के इस मुद्दे को उठाने के पीछे जेडीएस को साधने की रणनीति के तौर पर भी देख रहे हैं. कर्नाटक में चुनाव के बाद से ही जेडीएस और बीजेपी के बीच समझौता होने की अटकलें लग रही है. कांग्रेस भी दोनों पर मिलकर सरकार स्थिर करने का आरोप लगा चुकी है.

कहा जा रहा है कि बीजेपी ने जेडीएस को साधने के लिए ही अब तक कर्नाटक में नेता प्रतिपक्ष की घोषणा नहीं की है. बीजेपी यह पद जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी को देना चाह रही है. कुमारस्वामी कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

जेडीएस की एक मजबूरी अपने विधायकों को बचाने की भी है. बीजेपी-जेडीएस के कई विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस ऑपरेशन पंजा के तहत इन विधायकों को तोड़ रही है. 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अंदरुनी सियासत से जूझ रही बीजेपी और जेडीएस को कावेरी जल के रूप में बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है. यह मुद्दा कर्नाटक की सियासत में दोनों के साथ आने की राह को आसान कर सकता है. 

BJP-JDS के साथ आने से कांग्रेस को कितना नुकसान?
बीजेपी और जेडीएस के साथ आने का सीधा असर लोकसभा चुनाव 2024 पर पड़ेगा, जहां कांग्रेस ने 20 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. बीजेपी बेंगलुरु, तटीय कर्नाटक और महाराष्ट्र कर्नाटक में मजबूत स्थिति में है, जबकि ओल्ड मैसूर जेडीएस का गढ़ माना जाता है. 

2023 के चुनाव में बीजेपी को कर्नाटक में 66 सीट और 36 प्रतिशत वोट मिले, जबकि जेडीएस 19 सीट जीतने में भी कामयाब रही. पार्टी को 13.29 प्रतिशत वोट भी मिले. सत्ता में आई कांग्रेस को 43 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस कर्नाटक की रिकॉर्ड 135 सीटों पर जीत हासिल की. 

वोट फीसदी की बात करें तो बीजेपी जेडीएस के पास कांग्रेस के 43 प्रतिशत के मुकाबले 49 प्रतिशत है. यानी 6 प्रतिशत ज्यादा. 

कर्नाटक की 20-25 सीटों पर बीजेपी जेडीएस के मैदान में उतरने की वजह से चुनाव हार गई. हार के मार्जिन से ज्यादा वोट जेडीएस के उम्मीदवारों ने काट लिए. इनमें बीटीएम लेआउट, विजयनगर जैसी हॉट सीटें भी शामिल हैं. 

2019 में जेडीएस कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस ने 21 और जेडीएस ने 7 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. अधिकांश उम्मीदवार कावेरी नदी से प्रभावित सीटों पर उतारा था. 

गठबंधन में जेडीएस को बिजापुर, उत्तर कन्नड़, शिमोगा, हासन, उडुपी-चिकमंगलूर, तुमकुर और मांड्या सीटें मिली थी.

जेडीएस हासन सीट जीतने में कामयाब रही. मंड्या में पार्टी सिर्फ 13 हजार वोटों से चुनाव हारी. वहीं जेडीएस के गढ़ चमराजनगर और मैसूर की सीटों पर बीजेपी कम मार्जिन से ही चुनाव जीती. जेडीएस अगर साथ आती है, तो इन सीटों का समीकरण बदल सकता है.

कर्नाटक में लोकसभा की कुल 28 सीटें हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी को 25 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं कांग्रेस-जेडीएस ने 1-1 सीट पर जीत दर्ज की थी. 

अब 3 अहम बयान पढ़ लीजिए…

डीके शिवकुमार, कर्नाटक के डिप्टी सीएम- बीजेपी और जेडीएस के प्रति सरकार जिम्मेदार नहीं है. हम किसानों और सुप्रीम कोर्ट को जवाब देंगे. तमिलनाडु हमारा पड़ोसी राज्य है और हम उससे लड़ना नहीं चाहते हैं. कावेरी विवाद का हम स्थाई समाधान खोज रहे हैं.

बीएस बोम्मई, पूर्व सीएम और बीजेपी नेता- कांग्रेस ने किसानों और कावेरी नदी बेसिन के लोगों को धोखा दिया है. तमिलनाडु पानी का दुरुपयोग कर रही है. सरकार इसके खिलाफ लड़ने की बजाय अपने लोगों का अधिकार काट रही है.  यह किस तरह की सरकार है?

एचडी कुमारस्वामी, पूर्व सीएम और जेडीएस नेता- इंडिया गठबंधन में जान फूंकने के लिए कावेरी नदी का पानी तमिलनाडु को दिया गया है. यह किसान के हितों का बलिदान है. कांग्रेस ने कन्नडिगाओं, विशेषकर किसानों के साथ ‘विश्वासघात’ किया है.

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